“Pritam की प्रेरक यात्रा: एक छोटे गाँव से आत्मनिर्भरता तक का संघर्ष और सफलता”

Pritam की प्रेरक यात्रा एक छोटे गाँव से आत्मनिर्भरता तक का संघर्ष और सफलता
Pritam की प्रेरक यात्रा एक छोटे गाँव से आत्मनिर्भरता तक का संघर्ष और सफलता

📝 भाग 1: एक छोटे से गाँव से शुरू हुआ सपना

Pritam का जन्म एक छोटे से गाँव में हुआ था, जहाँ सुविधाएँ सीमित थीं लेकिन सपने असीमित। मिट्टी की खुशबू में बसी उस ज़िंदगी में बचपन खेल-कूद, स्कूल की घंटियाँ और माँ की ममता से भरा हुआ था। लेकिन गरीबी ने कभी उसका साथ नहीं छोड़ा। किताबें उधार मिलती थीं और स्कूल पैदल जाना पड़ता था। बिजली अक्सर गायब रहती थी, लेकिन मन में उजाला था — कुछ कर दिखाने का उजाला

Pritam बचपन से ही दूसरों से अलग था। जब बाकी बच्चे छुट्टियों में मेला देखने जाते, वो गाँव की लाइब्रेरी में बैठकर किताबें पढ़ता। उसके लिए किताबें केवल शब्द नहीं थीं, बल्कि वो खिड़कियाँ थीं — एक नई दुनिया की तरफ़। उसे एहसास हो गया था कि अगर इस जीवन को बदलना है, तो शिक्षा ही एकमात्र रास्ता है।

🚩 संघर्ष की शुरुआत

Pritam का सपना था — बड़ा आदमी बनना, लेकिन रास्ता आसान नहीं था। पिता किसान थे, और फसल का दाम कभी समय पर नहीं मिलता। आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि एक समय ऐसा आया जब घर में एक वक़्त का खाना भी नसीब नहीं होता था। लेकिन उन कठिन परिस्थितियों ने Pritam को तोड़ा नहीं, बल्कि उसे मजबूत बना दिया

कई बार स्कूल की फीस भरने के लिए उसे मजदूरी तक करनी पड़ी। दिन में पढ़ाई, शाम को मजदूरी, और रात को खुद से किए गए वादे — यही उसकी दिनचर्या थी।

🧠 Pritam की सोच अलग थी

जहाँ कई लोग हालात को कोसते हैं, वहीं Pritam ने हालात को चुनौती दी। उसका मानना था कि “अगर किस्मत साथ न दे, तो मेहनत से उसे मजबूर कर दो।” यही सोच उसे हर दिन एक नई ऊर्जा देती थी।

उसने छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया ताकि अपनी पढ़ाई की फीस भर सके। दिन-ब-दिन उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया। वो जानता था कि संघर्ष अभी है, लेकिन सफलता दूर नहीं

📚 पहली बड़ी जीत

10वीं की परीक्षा में Pritam ने पूरे जिले में टॉप किया। उसके गाँव का नाम पहली बार अखबार में आया। गाँव के लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनका Pritam पूरे जिले का हीरो बन गया है।

यह सिर्फ़ एक परीक्षा नहीं थी — यह एक संकेत था कि सपनों का पीछा करने वालों को रास्ता मिल ही जाता है।

✨ भाग 2: सपनों की उड़ान और आत्म-संदेह की दीवारें
Pritam की ज़िंदगी में जब 10वीं की सफलता आई, तो मानो सपनों को पंख मिल गए। गाँव के लोग उसे मिसाल मानने लगे। लेकिन जिस तरह सूरज के साथ धूप भी आती है, उसी तरह सफलता के साथ नई चुनौतियाँ भी शुरू हो गईं।

🏫 कॉलेज की दहलीज़ पर पहला कदम
10वीं के बाद Pritam को शहर के इंटर कॉलेज में दाख़िला मिल गया। ये पहला मौका था जब वो अपने गाँव से बाहर निकला था — एक बिल्कुल नई दुनिया, नए लोग, नया माहौल। गाँव की सादगी से निकलकर शहर की चकाचौंध ने उसे थोड़ा असहज कर दिया।

जहाँ बाकी छात्र ब्रांडेड कपड़े पहनते थे, लैपटॉप और स्मार्टफोन इस्तेमाल करते थे, वहीं Pritam के पास केवल दो जोड़ी कपड़े, एक पुराना मोबाइल और आत्मविश्वास था। वह हर दिन कॉलेज में खुद को एक “अलग दुनिया का आदमी” महसूस करता।

🧠 भीतर उठते सवाल: क्या मैं काबिल हूँ?
Pritam के मन में अक्सर ये सवाल उठते थे:

“क्या मैं यहाँ टिक पाऊँगा?”

“क्या मैं इन बच्चों जितना स्मार्ट हूँ?”

“क्या मेरी गरीबी मेरे सपनों की दुश्मन बन जाएगी?”

ये आत्म-संदेह उसकी सबसे बड़ी परीक्षा थी। कभी-कभी वो खुद से सवाल करता कि क्या वाकई उसका सपना हकीकत बन सकता है? लेकिन हर बार जब वो अपनी माँ की आँखों में उम्मीद देखता, उसे लगता — “हाँ, मुझे हार नहीं माननी।”

📚 मेहनत ही उसका साथी बनी
कॉलेज में Pritam ने बाकी छात्रों से सीखना शुरू किया — वो कैसे पढ़ते हैं, कैसे नोट्स बनाते हैं, कैसे इंटरव्यू में बोलते हैं। उसने इंटरनेट पर मुफ्त में मिलने वाले यूट्यूब लेक्चर देखे, लाइब्रेरी में घंटों समय बिताया, और हर विषय को पूरी गहराई से समझने की कोशिश की।

समय के साथ Pritam ने समझ लिया कि असली पहचान दिखावे से नहीं, बल्कि सीखने की ललक और सच्ची मेहनत से बनती है।

💔 पहला बड़ा झटका
एक बार कॉलेज में एक प्रतियोगिता हुई — “स्पीच कंपटीशन”। Pritam ने भी भाग लिया। दिल से तैयारी की। लेकिन मंच पर पहुँचते ही उसका गला सूख गया। वो घबरा गया। लोग हँसने लगे। Pritam मंच से चुपचाप उतर आया।

यह उसकी ज़िंदगी की पहली सार्वजनिक असफलता थी। उसने खुद से कहा, “शायद मैं इस दुनिया के लिए नहीं बना।”

लेकिन उसी रात उसने आईने में खुद को देखा और कहा,
“Pritam, तू गिरा है, लेकिन हारा नहीं है।”

🔥 Motivation की चिंगारी
उस रात उसने अपने कमरे की दीवार पर एक पंक्ति लिखी —
“हर हार, जीत का पहला कदम होती है।”

यही उसका मंत्र बन गया।

अब उसने अपने आप को बदलने का फैसला किया। वह हर दिन सुबह 5 बजे उठकर बोलने का अभ्यास करता, शीशे के सामने खड़ा होकर खुद से बात करता। TEDx टॉक सुनता, महान वक्ताओं को पढ़ता और खुद पर यकीन करना शुरू किया।

🌱 नया आत्मविश्वास, नया Pritam
कुछ ही महीनों में, वही Pritam जो मंच पर बोल नहीं पाया था, कॉलेज की वार्षिक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता बनकर खड़ा था। इस बार तालियाँ भी मिलीं और मान-सम्मान भी।

Pritam ने समझा कि असफलता अंत नहीं, एक सीढ़ी होती है। जब हम उसे अपनाते हैं, तभी हम ऊपर चढ़ सकते हैं।

भाग 3: मोड़ जहाँ सपनों ने आकार लेना शुरू किया

कॉलेज के वो दिन Pritam के लिए केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं थे। अब तक उसने समझ लिया था कि यदि उसे जीवन में कुछ बड़ा हासिल करना है, तो सिर्फ़ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि वास्तविक कौशल और अनुभव भी ज़रूरी है। उसकी यात्रा अब एक नए अध्याय में प्रवेश कर रही थी — जहाँ सपने स्पष्ट हो रहे थे और राहें खुद बन रही थीं।

💼 पहला इंटर्नशिप – पहला असली अनुभव

Pritam ने कॉलेज में रहते हुए एक स्टार्टअप में इंटर्नशिप के लिए आवेदन किया। उस कंपनी को एक ऐसे लड़के की ज़रूरत थी जो जुनूनी हो, सीखने को तैयार हो और टीम में फिट हो सके। इंटरव्यू के दौरान Pritam से पूछा गया:

“आपके पास लैपटॉप भी नहीं है, आपने किसी प्रोजेक्ट पर काम नहीं किया, तो हम आपको क्यों लें?”

Pritam ने मुस्कुरा कर जवाब दिया:

“मुझे लैपटॉप नहीं मिला, फिर भी मैंने मोबाइल पर कोडिंग सीख ली। और अगर आपने मुझे मौका दिया, तो मैं खुद को साबित कर दूँगा।”

उसके आत्मविश्वास और सच्चाई ने चयनकर्ताओं का दिल जीत लिया, और Pritam को इंटर्नशिप मिल गई। यही से वो व्यावहारिक दुनिया शुरू हुई, जहाँ उसने सीखा:

  • क्लाइंट से कैसे बात करें
  • समय सीमा में काम कैसे पूरा करें
  • टीम में तालमेल कैसे बनाएं

Pritam ने केवल काम नहीं सीखा, बल्कि सपनों को ज़मीनी रूप देने की कला भी सीखी।

🌐 नए स्किल्स, नई पहचान

इंटर्नशिप के दौरान Pritam ने कंटेंट राइटिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग, डिजिटल मार्केटिंग और बेसिक कोडिंग जैसी चीज़ें सीखी। वो जानता था कि आज की दुनिया में मल्टी-स्किल होना एक ताकत है।

वो यूट्यूब से सीखता, ऑनलाइन कोर्स करता, फ्रीलांस प्रोजेक्ट्स लेता और हर दिन खुद को एक कदम आगे बढ़ाता। लोगों ने कहना शुरू कर दिया —
“Pritam सिर्फ़ सीख नहीं रहा है, वो खुद को तराश रहा है।”

💡 एक आइडिया ने बदल दी दिशा

एक दिन Pritam एक छोटे गाँव के स्कूल में वर्कशॉप के लिए गया। वहाँ उसने देखा कि बच्चे आज भी बुनियादी शिक्षा से वंचित हैं। उस दिन उसे एक ख्याल आया:

“अगर मैं गाँव के बच्चों के लिए डिजिटल शिक्षा की शुरुआत करूँ, तो क्या वे भी आगे बढ़ सकते हैं?”

यही ख्याल एक मिशन बन गया — Pritam Foundation नामक एक छोटा सा वॉलंटियर ग्रुप शुरू हुआ। कॉलेज के दोस्तों को जोड़ा गया, लैपटॉप जुटाए गए, और वीकेंड्स पर गाँवों में जाकर बच्चों को पढ़ाया जाने लगा।

यह उसका पैशन प्रोजेक्ट बन गया, जिसने उसे केवल स्किल्स ही नहीं, एक उद्देश्य भी दिया।

🙏 कठिनाई फिर भी पीछा नहीं छोड़ती

जब सब कुछ अच्छा लगने लगा था, तभी एक दिन उसे खबर मिली कि उसके पिता को दिल का दौरा पड़ा है। घर की स्थिति पहले से ही नाज़ुक थी। इंटर्नशिप की मामूली कमाई अस्पताल के खर्चों के लिए नाकाफ़ी थी।

Pritam के पास दो ही रास्ते थे:

  1. सबकुछ छोड़कर घर वापस चला जाए
  2. या फिर एक हाथ से घर संभाले और दूसरे हाथ से सपनों को

उसने दूसरा रास्ता चुना।

वो दिन में काम करता, रात में फ्रीलांसिंग करता, और जो कुछ भी कमा पाता, घर भेज देता। उसके अंदर अब वो आग थी, जो केवल परिस्थितियों से नहीं, बल्कि कर्तव्य और सपना दोनों से जल रही थी।

🧭 Pritam की सोच अब और स्पष्ट हो चुकी थी

अब वह जान चुका था कि जीवन में उद्देश्य होना कितना जरूरी है। वो सिर्फ़ अपने लिए नहीं, बल्कि अपने परिवार, अपने गाँव और उन हज़ारों बच्चों के लिए जी रहा था जो आज भी सपनों को सिर्फ़ सपनों में देखते हैं।

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